संवेदना।

मै बहुत अर्से से चाहती थी लिखना पर मेरे पास कोई ना वजह थी ना विषय। जीवन मे बहुत कुछ खोने के बाद भी मेरा प्यार पर यकीन कम नही हुआ और इसलिए शायद मैने उसके हर फरेब को सच मान लिया। मैं बहुत कुछ नही जानती थी उसके बारे क्योंकि मेरे लिए यही बहुत था की उसने अपने व्यक्तिगत जीवन को संवारने के बजाए समाज सेवा को महत्व दिया। यही कारण था की उसकी बात कभी झूठ नही लगी। मेरे दिल मे उसके लिए अगाध प्यार कब पनप गया पता भी नही चला। मै अपने हर शब्द मे सिर्फ उसे महसूस और धड़कन मे सुनने लगी। मुझे कभी एक पल के लिए भी ये नही लगा की वो वास्तव मे हर पल सिर्फ मेरी भावनाओ से खेल रहा था। कई बार चाहा की दिमाग से सोचा पर सच तो ये है की जहाँ सच्चा प्यार होता है वहा दिमाग काम ही नही करता। एक दिन एक ऐसा समय आया जब मेरे सामने प्रस्ताव था किसी से मिलने का मैने बहुत विश्वास के साथ उसे बताया नही बल्कि पूछा क्योंकि मुझे विश्वास था की वो मना कर देगा पर उसने कहा हाँ जाओ मिल लो। इतना सुनते ही मेरे शरीर में मानो रक्त का संचार ही रूक गया। एक पल के लिए लगा मेरी सांसे ही नहीं चल रही। मैंने खुद को सम्हाले और समझाया की नहीं मै गलत समझ रही हूँ, वो वास्तव मे मुझे चाहता हैं और सिर्फ मेरी इच्छा जानने के लिए उसने ऐसा बोला। पर मैं गलत थी। सच तो ये था की उसने मुझे कभी चाहा ही नहीं। जब कोशिश की बात करने की उसने हर बार ये कह कर मेरी भावनाओ को कुचल दिया की रोज वही बात करती हो। जो उसके लिए वही बात थी वो मेरे लिए मेरा संसार था। बहुत रोई खुद को समझाया और मन नही माना तो उसे मैसेज किया, उसने जवाब दिया मूड ठीक नहीं हैं, मेरे मन में एक आशा की किरण जग उठी की उसे पछतावा हैं,मैंने उसे गलत समझा। बहुत उम्मीद के साथ मैंने उससे उसके दुख का कारण पूछा, तो उसने जवाब दिया की उसका फोन टूट गया जिसे उसने बहुत मेहनत से लिया था। मैं एक बार फिर टूट गई बिखर गई, पर उसके फरेब ने मुझे संवेदना का सही मतलब बता दिया भी और ये भी की भौतिकता के इस युग मे किसी इन्सान के दुख से कही ज्यादा बड़ा हैं मोबाइल टूटने का दुख।

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